सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

4G सिम धमाका करने जा रहा है | फिलहाल पिछले कई सालों से जो Uninor Telenor 4G uninor sim Book

 Uninor Telenor 4G Sim Book 2022:- टेलीनॉर जिसे आप यूनिनॉर के भी नाम से जानते हैं ! जैसे ही इस कंपनी ने भारतीय बाजार में अपना कदम रखा टेलीकॉम कंपनियों का दिवालिया घोषित करा दिया था | यूनिनॉर सिम कार्ड से ही भारतीय बाजार में आने के उपरांत ही लोगों ने जाना कि अनलिमिटेड फ्री कॉलिंग, अनलिमिटेड रोमिंग कॉलिंग, अनलिमिटेड इंटरनेट ब्राउजिंग क्या होती है |

Uninor Telenor 4G Sim Book
यूनिनॉर सिम फिर भारत में धूम ! तहलका मचा रहा यह सस्ता 4G प्लान, एक बार में जिंदगी भर रिचार्ज | 2

आते ही मानो तहलका मचा दिया हो, परंतु देर आए दुरुस्त आए मिली जानकारी के अनुसार टेलीनॉर पूरे भारत में 4G सिम धमाका करने जा रहा है | फिलहाल पिछले कई सालों से जो Uninor Telenor 4G uninor sim Book के सिम बंद होने के कारण लोग इसे भूल गए थे | अब जैसे ही मार्केट में 4G लांच होगा जब दिल से टेलीनॉर के दीवाने हो जाएंगे |

इस पोस्ट में क्या है?

Uninor Telenor 4G Sim Book ऑनलाइन कैसे करें?

Uninor Telenor 4G Sim Book - दरअसल कई वर्षों से भारत में अपनी सेवाएं बंद होने के कारण एक बार फिर टेलीनॉर ने 4G के साथ भारतीय बाजारों में अपना दबदबा कायम करने के लिए 4G लॉन्च कर दिया है | जिससे ग्राहकों को 4G इंटरनेट, 4G कॉलिंग काफी सस्ती दरों पर मिलने वाली है | वही मिल रही जानकारी के अनुसार अकेली uninor sim card लाइव टाइम चलने वाला 4G सिम कार्ड रिचार्ज प्लान दे रही है | तो आप भी कैसे ऑनलाइन यूनिनॉर टेलीनॉर सिम बुक कर पाएंगे संबंधित जानकारी आर्टिकल पोस्ट में मौजूद है |

टेलीनॉर के 4G Plan धमाकेदार रिचार्ज प्लान

जी हां ! दोस्तों Uninor Telenor 4G Sim Book के साथ आप लाइव टाइम चलने वाला रिचार्ज प्लान दिया जा रहा है | जिसमें आपको 2gb इंटरनेट प्रतिदिन तथा सोच में इसकी सुविधा भी उपलब्ध रहेगी इस जांच का फायदा लेने के लिए आप लोगों को ऑनलाइन बुकिंग करनी होगी | अगर आप भी चाहते हैं टेलीनॉर का सिम बुक करना तो आपको क्या-क्या दस्तावेज देने होंगे, और कैसे यह प्रक्रिया होगी सभी जानकारी इस लेख में उपलब्ध है |

  • आधार कार्ड
  • दो पासपोर्ट साइज फोटो
  • uninor sim card price

Uninor Telenor Sim Book ऑनलाइन बुक करने हेतु आपको टेलीनॉर की uninor official website पर जाकर संबंधित जानकारी हासिल करना होगा | तत्पश्चात सिम कार्ड कैसे बुक करना है | वहां पर सभी जानकारी तथा दिशा निर्देश के माध्यम से पढ़ लेना होगा | सभी प्रक्रियाओं को सहित सहित पर लेने के उपरांत आपको ऑनलाइन uninor sim 2022 बुकिंग के लिए आवेदन करना होगा | यूनिनॉर 4G सिम बुक करने हेतु लिंक नीचे क्लिक करें |

सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

भारत के इस राज्य में है करोड़पतियों का एकलौता गांव, यहां हर आदमी के पास है बेशुमार दौलत

 

भारत का एकलौता करोड़पतियों का यह गांव महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में है। इस गांव का नाम है हिवरे बाजार (Hiware Bazar Village)। हालांकि, इस गांव में रहने वाले लोगों की पहले ऐसी स्थिति नहीं थी।

भारत के इस राज्य में है करोड़पतियों का एकलौता गांव, यहां हर आदमी के पास है बेशुमार दौलतImage Source : FILE PHOTO
Edited By: Sushmit Sinha 16 Oct 2022, 20:42:06 IST

HIGHLIGHTS

  • भारत के इस राज्य में है करोड़पतियों का एकलौता गांव
  • यहां हर आदमी के पास है बेशुमार दौलत
  • गांव में एक भी मच्छर नहीं

अभी हाल ही में हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट जारी की गई थी, जिसमें बताया गया था कि भारत की स्थिति हंगर इंडेक्स में पाकिस्तान से भी बदतर है। हालांकि, इससे इतर हम आपको बता दें कि भारत में एक ऐसा गांव हैं, जहां रहने वाला हर आदमी करोड़पति है। सबसे बड़ी बात की हम यहां भारत के बड़े शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली और कोलकाता की बात नहीं कर रहे हैं। बल्कि हम बात कर रहे हैं भारत के एक गांव की जिसके बारे में शायद बहुत से लोग नहीं जानते हैं।

महाराष्ट्र में है ये गांव

भारत का एकलौता करोड़पतियों का यह गांव महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में है। इस गांव का नाम है हिवरे बाजार (Hiware Bazar Village)। हालांकि, इस गांव में रहने वाले लोगों की पहले ऐसी स्थिति नहीं थी। 1990 में यहां रहने वाले लोगों की स्थिति बेहद खराब थी। उस वक्त यहां के ज्यादातर परिवार गरीब किसान थे। इस गरीबी का सबसे बड़ा कारण यह था कि इस गांव में पानी का कोई सोर्स नहीं था। लेकिन अब इन गांव वालों की किस्मत बदल गई है और यहां रहने वाले लगभग 305 परिवारों में से 80 फीसदी से ज्यादा लोग करोड़पति हैं। 

गांव में एक भी मच्छर नहीं

अमीरी के साथ-साथ इस गांव में साफ सफाई का भी पूरा ख्याल रखा जाता है। इस वजह से इस गांव में एक भी मच्छर नहीं है। इस गांव में ना तो पीने के पानी की कमी है और ना ही हरियाली की। सबसे अच्छी बात यह है कि इस गांव में आस-पास के गांवों के मुकाबले गर्मी भी कम होती है। इस गांव में रहने वाले 50 से ज्यादा परिवारों की वार्षिक आय 10 लाख रुपए से ज्यादा है। 

सिर्फ तीन परिवार गरीबी रेखा के नीचे हैं

इस गांव में गरीबी की बात करें तो यहां सिर्फ तीन ऐसे परिवार हैं, जो गरीबी रेखा के नीचे हैं। लेकिन साल 1995 में यहां करीब 168 परिवार गरीबी रेखा के नीचे थे। बाद में जब 1998 में यह सर्वेक्षण किया गया तो पता चला की इन परिवारों की संख्या अब गिर कर 53 हो गई है। वहीं वर्तमान की बात करें तो यहां सिर्फ तीन ही परिवार ऐसे हैं, जो गरीबी रेखा के नीचे हैं।

रविवार, 16 अक्तूबर 2022

डाक्टर के पर्चे पर अब Rx की जगह श्री हरि लिखो और दवा का नाम लिख दो हिंदी में क्रोसिन बोलो क्या दिक़्क़त है.. @ChouhanShivraj का सुझाव..यहां गांव-गांव में डॉक्टर की जरूरत है, हिंदी में लिखेंगे, इसमें क्या दिक्कत है


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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से अमेरिका में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान डॉलर के मुक़ाबले रुपये की गिरती कीमत को लेकर सवाल पूछा गया था. वित्त मंत्री ने कहा कि वो ऐसे देखती हैं कि रुपया नीचे नहीं गिर रहा बल्कि डॉलर मज़बूत हो रहा है. भारत का रुपया शायद डॉलर के मुक़ाबले टिका रहा है.

 वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से अमेरिका में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान डॉलर के मुक़ाबले रुपये की गिरती कीमत को लेकर सवाल पूछा गया था. वित्त मंत्री ने कहा कि वो ऐसे देखती हैं कि रुपया नीचे नहीं गिर रहा बल्कि डॉलर मज़बूत हो रहा है. भारत का रुपया शायद डॉलर के मुक़ाबले टिका रहा है.वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से अमेरिका में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान डॉलर के मुक़ाबले रुपये की गिरती कीमत को लेकर सवाल पूछा गया था. वित्त मंत्री ने कहा कि वो ऐसे देखती हैं कि रुपया नीचे नहीं गिर रहा बल्कि डॉलर मज़बूत हो रहा है. भारत का रुपया शायद डॉलर के मुक़ाबले टिका रहा है.


ग्वालियर में नया एयरपोर्ट व कार्गो टर्मिनल क्षेत्र के विकास की कुंजी बनेगा। यह न केवल पर्यटकों को चम्बल क्षेत्र का इतिहास व सौँदर्य देखने को प्रोत्साहित करेगा, अपितु क्षेत्र के औद्योगिक व स्थानीय उत्पादों को देश-विदेश में सरलता से पहुँचाएगा।

 ग्वालियर में नया एयरपोर्ट व कार्गो टर्मिनल क्षेत्र के विकास की कुंजी बनेगा।

यह न केवल पर्यटकों को चम्बल क्षेत्र का इतिहास व सौँदर्य देखने को प्रोत्साहित करेगा, अपितु क्षेत्र के औद्योगिक व स्थानीय उत्पादों को देश-विदेश में सरलता से पहुँचाएगा।ग्वालियर में नया एयरपोर्ट व कार्गो टर्मिनल क्षेत्र के विकास की कुंजी बनेगा।

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शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2022

खुशखबरी: केंद्रीय कर्मचारियों को बड़ा तोहफा, दिवाली पर 1 महीने की सैलरी के बराबर मिलेगा बोनस, नोटिफिकेशन जारी

 Government Employees: केंद्रीय कर्मचारियों को केंद्र सरकार की तरफ से बड़ा तोहफा मिला है. दिवाली पर कर्मचारियों को बोनस देने का ऐलान किया गया है. वित्त मंत्रालय की तरफ से केंद्र के कर्मचारियों को नॉन-प्रोडक्टिविटी लिंक्ड बोनस (ad-hoc Bonus) दिया जाएगा. इस बोनस में 30 दिन की सैलरी के मुताबिक पैसा कर्मचारियों को दिया जाएगा. इसमें केंद्र सरकार के ग्रुप C और ग्रुप B कैटेगरी के कर्मचारी शामिल हैं. 

किन कर्मचारियों को मिलेगा फायदा?

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ग्रुप B और ग्रुप C में आने वाले केंद्र सरकार के उन non-gazetted employees को भी बोनस दिया जाएगा. यह वो कर्मचारी हैं, जो किसी प्रोडक्टिविटी लिंक्ड बोनस स्कीम में नहीं आते. ad-hoc Bonus का फायदा केंद्रीय अर्धसैनिक बलों (paramilitary forces) के कर्मचारियों को भी दिया जाएगा. इसके अलावा अस्थाई कर्मचारियों (Temporary workers) को भी इसका फायदा मिलेगा. 

कैसे तय होगा कितना मिलेगा एड-हॉकबोनस?

कर्मचारियों की ऐवरेज सैलरी, गणना की उच्चतम सीमा के अनुसार, जो भी कम हो, उसके आधार पर बोनस जोड़ा जाता है. 30 दिनों का मासिक बोनस करीब एक महीने की सैलरी के बराबर होगा. उदाहरण के लिए अगर किसी कर्मी को 7000 रुपए मिल रहे हैं, तो उसका 30 दिनों का मासिक बोनस लगभग 6908 रुपए होगा. इसमें कैलकुलेशन के हिसाब से 7000*30/30.4= 6907.89 रुपए (6908 रुपए) बनेगा. इस तरह के बोनस का फायदा, केंद्र सरकार के उन कर्मचारियों को ही मिलेगा, जो 31 मार्च 2021 को सर्विस में रहे हैं. साल 2020-21 के दौरान कम से कम छह महीने तक लगातार ड्यूटी दी है. एडहॉक बेस पर नियुक्त अस्थायी कर्मचारियों को भी ये बोनस मिलेगा. हालांकि, इस बीच सर्विस में कोई ब्रेक नहीं होना चाहिए.

पंथधर्म के नाम पर देह का शोषण:प्रेग्नेंट होते ही छोड़ देते हैं, भीख मांगने को मजबूर खास मंदिरों की देवदासियां

 

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पंथधर्म के नाम पर देह का शोषण:प्रेग्नेंट होते ही छोड़ देते हैं, भीख मांगने को मजबूर खास मंदिरों की देवदासियां

18 घंटे पहलेलेखक: कर्नाटक के कोप्पल से मनीषा भल्ला

देवदासी। हम सभी ने ये नाम तो सुना ही होगा। किसी ने कहानी में तो किसी ने फिल्म में। देवदासी यानी देवों की वे कथित दासियां जिन्हें धर्म के नाम पर सेक्स स्लेव बनाकर रखते हैं। उम्र ढलते ही भीख मांगने के लिए छोड़ दिया जाता है। चौंकिए मत। ये प्रथा राजा-महाराजाओं के समय की बात नहीं, आज का भी सच है।

आज पंथ में हमारी रिपोर्टर मनीषा भल्ला इस सच को आपके सामने ला रही हैं…

देवदासियों का गढ़ यानी बेंगलुरु से तकरीबन 400 किलोमीटर दूर स्थित उत्तरी कर्नाटक का जिला कोप्पल। पूर्णिमा की रात और चांद की रोशनी से नहाया हुलगेम्मा देवी का मंदिर भक्तों से खचाखच भरा है। हुदो, हुदो...श्लोक चारों ओर हवा में तैर रहे हैं। इस श्लोक का उच्चारण करने वाली हर तीसरी महिला के गले में सफेद और लाल मोतियों की माला यानी मणिमाला है। हाथों में हरे रंग की चूड़ियां और चांदी के पतले कंगन हैं।

वे दीये जला रही हैं। उनके हाथ में बांस की एक टोकरी है। जिसे यहां के लोग पडलगी कहते हैं। इसमें हल्दी-कुमकुम, अनाज, सब्जी, धूप, अगरबत्ती, सुपारी, पान पत्ता, केला और दक्षिणा रखी है। वे देवी मां को पडलगी में रखे सामान अर्पित कर रही हैं। मंदिर में मौजूद बाकी लोगों से इनकी पहचान अलग है। वहां मौजूद एक शख्स से पूछने पर पता चलता है कि ये महिलाएं देवदासी हैं।

गले में मणिमाला पहनी 22 साल की ये महिला 3 साल पहले ही देवदासी बनी हैं। देवदासियों के लिए मणिमाला ही मंगलसूत्र होता है। - Dainik Bhaskar
गले में मणिमाला पहनी 22 साल की ये महिला 3 साल पहले ही देवदासी बनी हैं। देवदासियों के लिए मणिमाला ही मंगलसूत्र होता है।

इन्हें पूर्णिमा की रात का खास इंतजार होता है। अपनी देवी को खुश करने के लिए वे इस मंदिर में आती हैं।

मंदिर में इधर-उधर नजर दौड़ाई। 22 साल की बसम्मा मंदिर में आराधना कर रही हैं। पूछने पर कहती हैं- तीन साल पहले देवदासी बनी हूं। माता-पिता ने बुढ़ापे के सहारे की वजह से देवदासी बना दिया। तब से यहीं भीख मांगकर गुजर-बसर कर रही हूं।

यहां से तकरीबन 15 किलोमीटर चलने पर मिलता है विजयनगर जिले का उक्करकेरी गांव। इसे देवदासियों का गढ़ कहते हैं। संकरी गलियों से होते हुए मैं देवदासी लक्ष्मी के घर पहुंची। पांव पसारने की जगह जितनी झोपड़ी, जहां वह अपने पांच बच्चों के साथ रहती हैं। नहाना, खाना और सोना सब कुछ उसी झोपड़ी में। जमीन में छोटा सा गड्ढा खोदकर चटनी पीसने का जुगाड़ कर रखा है।

लक्ष्मी की बेटी जया कहती हैं, 'एक बार जोर से बारिश आ जाए, तो झोपड़ी में पानी घुस आता है। क्या खाएं, कहां रहें समझ नहीं आता। आप ही बताइए हम मर जाएं क्या…

आंखों में आंसू भरे जया कहती हैं, ’हमारा तो ये हाल है कि अपने पिता का नाम भी नहीं पता है। जिन्हें अगर पता भी है, वो डर के मारे नाम नहीं लेगा, क्योंकि वो पिता या तो कोई पंडित है या गांव का मुखिया या फिर कोई दबंग। जिसने किसी सामान की तरह मां को भोगा और जब मन भर गया तो छोड़ दिया।’

अपनी बेटी के साथ लक्ष्मी। वे कहती हैं कि सरकार मुझे 1500 रुपए हर महीने देती है। आज की महंगाई में आप ही बताओ इतने से क्या होता है। - Dainik Bhaskar
अपनी बेटी के साथ लक्ष्मी। वे कहती हैं कि सरकार मुझे 1500 रुपए हर महीने देती है। आज की महंगाई में आप ही बताओ इतने से क्या होता है।

यहां से आगे बढ़ी, तो हल्के हरे रंग की साड़ी में घर के बाहर बैठी मिलीं उल्लीम्मा। उम्र तकरीबन 50 साल। कहती हैं- हम 6 बहनें थीं। दो को माता-पिता ने देवदासी बना दिया और चार की शादी कर दी थी। मेरा पुरोहित तीन साल तक साथ रहा। उससे मुझे दो बच्चे हुए। उसके बाद उसने मुझे छोड़ दिया।

मैंने गुजारा कैसे किया है, मैं ही जानती हूं। जंगल से 50-50 किलो लकड़ी लेकर आती थी। उनके बंडल बनाती और शहर जाकर बेचती। एक दिन के ज्यादा से ज्यादा दस रुपए ही मिलते थे।

कई बार तो बच्चे भूखे ही रह जाते थे। भीख मांगकर गुजारा करना पड़ा। देवदासी होने की वजह से जो कष्ट मुझे मिला, वो किसी औरत को न मिले। इस धरती का सबसे बड़ा श्राप देवदासी होना है।

उल्लीम्मा कहती हैं- कहने को तो देवदासी घर की मुखिया होती हैं, वह घर का लड़का होती है, लेकिन हकीकत ये है कि हम देवदासियां शूद्र हैं। ऊंची जाति के मर्द हमारे साथ जब तक चाहें संबंध बनाते हैं। एक बार हम प्रेग्नेंट हुए कि दोबारा वे अपनी शक्ल नहीं दिखाते हैं। यहां तक कि अपने बच्चों को देखने भी नहीं आते।

उल्लीम्मा कहती हैं कि हमारी किस्मत खराब है, हम इसे शोषण भी नहीं कह सकते, क्योंकि धर्म के नाम पर देवदासी को अपने पुरोहित के साथ रहना ही है। - Dainik Bhaskar
उल्लीम्मा कहती हैं कि हमारी किस्मत खराब है, हम इसे शोषण भी नहीं कह सकते, क्योंकि धर्म के नाम पर देवदासी को अपने पुरोहित के साथ रहना ही है।

जब शादीशुदा बहनें घर आती हैं तो उनकी बहुत खातिरदारी होती है। उन्हें चूड़ी, पायल और कपड़े दिए जाते हैं। हमें तो बस इसी चारदीवारी में रहना होता है। न कहीं आना न जाना। कई बार मैं दूसरों को जोड़ियों में देखकर बहुत दुखी हो जाती हूं।

इसी गांव की 65 साल की पार्वती कहती हैं कि दस साल की उम्र में ही मुझे देवदासी बना दिया गया। मेरे पुरोहित से मुझे दो बेटियां और एक बेटा पैदा हुआ। बड़ा होने के बाद बेटा मुझे छोड़कर चला गया। दोनों बेटियों की किसी तरह से मैंने शादी की। अब इस घर में अकेली रहती हूं।

पुरोहित से कभी किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं मिली। वह मेरी ही कमाई से ऐश करके चला जाता था। मैं अपने गुजारे के लिए या तो सब्जी बेचा करती थी या खेत में मजदूरी करती थी। बच्चों की पैदाइश से लेकर उनकी शादियों तक का खर्च मैंने उठाया है।

जब पुरोहित की मौत हुई, तो मैं उनके घर गई थी। उसके परिवार ने मुझे घर में नहीं घुसने दिया।

कई महिलाएं कम उम्र में ही देवदासी बना दी जाती हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 20% महिलाएं ऐसी हैं, जो 18 साल से कम उम्र में देवदासी बनी हैं।- फाइल फोटो - Dainik Bhaskar
कई महिलाएं कम उम्र में ही देवदासी बना दी जाती हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 20% महिलाएं ऐसी हैं, जो 18 साल से कम उम्र में देवदासी बनी हैं।- फाइल फोटो
 - Dainik Bhaskar

कर्नाटक राज्य देवदासी महिडेयारा विमोचना संघ की स्टेट वाइस प्रेसिडेंट के. नागरतना बताती हैं कि दक्षिण भारत में सैकड़ों स्थानीय देवियां हैं, जिनके नाम पर लड़कियों को देवदासी बनाया जाता है। उनमें तीन देवियां मुख्य हैं। हुलगीम्मा, येलम्मा और होसुरम्मा। ये तीनों बहनें हैं।

देवदासियों के लिए कोई तय उम्र नहीं है। पांच साल की लड़की भी देवदासी बन सकती है और दस साल की भी। देवदासी बनने वाली लड़कियां दलित परिवार की ही होती हैं।

इन्हें सदा सुहागिन समझा जाता है। पार्वती की बहनें और शिव की दूसरी पत्नी भी कहा जाता है। शादी-ब्याह में सबसे पहले पांच देवदासियों को खाना खिलाया जाता है। आज भी उचिंगिम्मा के मंदिर में हर साल त्योहार होता है, जहां देवदासियों के बदन पर सिर्फ नीम के पत्ते बांधे जाते हैं और इन्हें देवी के रथ के साथ चलना होता है।

पहले मन्नत पूरी होने पर बनाते थे देवदासी, बाद में दबंग दबाव डालकर बनवाने लगे

दलित हकुगढ़ समिति शोषण मुक्ति संघ के ताल्लुका प्रधान सत्यमूर्ति बताते हैं ये परंपरा सालों से चली आ रही है। यहां के मियाजखेरी गांव में तो एक वक्त ऐसा था कि जो भी लड़की पैदा होती, उसे देवदासी बनना ही होता था।

गांव के मुखिया, प्रधान या किसी दबंग का किसी लड़की पर दिल आ गया, तो वह अपने चेलों के जरिए उसके परिवार पर देवदासी बनाने के लिए दबाव डलवाते हैं। वे उस परिवार को डराते हैं कि तुम्हारे घर के संकट टल जाएंगे, अपनी इस बेटी को देवदासी बना दो।

 - Dainik Bhaskar

आखिर दक्षिण भारत में ही क्यों है देवदासी परंपरा

डॉ. अमित वर्मा कहते हैं कि देवदासी परंपरा उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत के मंदिरों में मजबूती के साथ डेवलप हुई। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह रही उत्तर भारत में लगातार विदेशी आक्रमणकारियों का आते रहना। उन्होंने मंदिरों को काफी नुकसान पहुंचाया। ऐसे में यहां मंदिर संस्कृति वैसी विकसित नहीं हो सकी जैसे दक्षिण भारत में हुई।

दक्षिण भारत के मंदिर पूजा-पाठ के साथ संस्कृति, कला, नृत्य, अर्थ और न्याय के भी केंद्र हुआ करते थे। भरतनाट्यम, कथक जैसे नृत्य मंदिरों से ही निकले। इन्हीं मंदिरों से देवदासी परंपरा भी निकली।

शुरुआत में देवदासियों की स्थिति बहुत मजबूत हुआ करती थी। समाज में उनका सम्मान था। तब देवदासियां दो प्रकार की थीं। एक जो नृत्य करती थीं और दूसरी जो मंदिर की देखभाल करती थीं।

अमित वर्मा कहते हैं कि पहले लोग ज्यादा बच्चे पैदा करते थे, लेकिन बीमारी और सही इलाज नहीं मिलने की वजह से बहुत कम बच्चे ही जीवित बचते थे।

ऐसे में उनके माता-पिता मंदिरों में जाकर मन्नतें मांगने लगे कि मेरी संतान जीवित बची तो एक बच्ची को देवदासी बनाएंगे। इस तरह ये परंपरा आगे बढ़ती गई। लोग अपनी मनोकामना पूरी होने पर परिवार की एक लड़की को देवदासी बनाने लगे।

ये देवदासियों के बच्चे हैं। इनका जीवन भी कम दुखदाई नहीं है। बिन बाप के ये बच्चे अपनी पढ़ाई से भी वंचित रह जाते हैं। - Dainik Bhaskar
ये देवदासियों के बच्चे हैं। इनका जीवन भी कम दुखदाई नहीं है। बिन बाप के ये बच्चे अपनी पढ़ाई से भी वंचित रह जाते हैं।

दक्षिण भारत के मंदिरों में इसके लिए देवदासी समर्पण का भव्य उत्सव होता था। कुंवारी कन्या का विवाह मंदिर के देवता से कराया जाता था। इसके बाद उसे मंदिर की सेवा के लिए रख लिया जाता था। बदले में उसे थोड़ी-बहुत आर्थिक मदद मिलती थी।

हर देवदासी के लिए मंदिर में पुरोहित होते थे। देवता से मिलाने के नाम पर वे देवदासियों के साथ संबंध बनाते थे। धीरे-धीरे उनकी आर्थिक स्थिति खराब होती चली गई और वे अपना गुजारा चलाने के लिए वेश्यावृति करने पर मजबूर हो गईं। दंबग और रसूख वाले लोग जबरन अपनी पसंद की लड़कियों को देवदासी बनाने लगे।

देवदासियों के अलग-अलग नाम, कहीं महारी तो कहीं राजादासी

देवदासियों का ग्रुप। इनमें से सभी के पुरोहित या तो मर चुके हैं या साथ छोड़ चुके हैं। अपनी गुजर-बसर करने के लिए ये भिक्षा मांगती हैं। - Dainik Bhaskar
देवदासियों का ग्रुप। इनमें से सभी के पुरोहित या तो मर चुके हैं या साथ छोड़ चुके हैं। अपनी गुजर-बसर करने के लिए ये भिक्षा मांगती हैं।

दक्षिण भारत के अलग-अलग भागों में देवदासियों को अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है। ओडिशा में इन्हें महारी यानी महान नारी कहते हैं, जो अपनी वासनाओं पर नियंत्रण रख सकती हैं।

कर्नाटक में इन्हें राजादासी, जोगथी और देवदासी कहा जाता है। महाराष्ट्र में मुरली, भाविन, तमिलनाडु में चेन्नाविडू, कन्निगेयर, निथियाकल्याणी, रूद्रा दासी, मणिकट्टर, आंध्र प्रदेश में भोगम, बासवी, सनि, देवाली, कलावंथाला और केरल में चक्यार, कुडिकय्यर कहा जाता है।

सरकार ने रोक लगा रखी है, लेकिन कर्नाटक में ही इनकी संख्या 70 हजार से ज्यादा

  • कर्नाटक सरकार ने 1982 में और आंध्र प्रदेश सरकार ने 1988 में इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2013 में बताया था कि अभी भी देश में 4,50,000 देवदासियां हैं।
  • जस्टिस रघुनाथ राव की अध्यक्षता में बने एक कमीशन के आंकड़े के मुताबिक सिर्फ तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में 80,000 देवदासिया हैं।
  • कर्नाटक में सरकारी सर्वे के मुताबिक राज्य में कुल 46,000 देवदासियां हैं। सरकार ने केवल 45 साल से ऊपर की देवदासियों की ही गिनती की है।
  • कर्नाटक राज्य देवदासी महिडेयारा विमोचना संघ के मुताबिक इनकी गिनती 70,000 है।
  • सरकार से 1500 रुपए मिलते हैं और राशन में सिर्फ चावल। खाने का बाकी सामान खुद अपने पैसे से इन्हें लाना होता है।

मैंने अमित वर्मा से पूछा कि जब सरकार ने इस पर रोक लगा रखी है, फिर ये प्रथा क्यों फल-फूल रही है... इस पर वे कहते हैं- इसका जारी रहना वैसा ही है जैसे दहेज का कानून बनने के बाद भी लोग दहेज लेते हैं। बलात्कार के खिलाफ कानून है, लेकिन आए दिन बलात्कार और छेड़खानी की घटनाएं होती हैं। कानून बनने के बाद भी बाल विवाह नहीं रुक रहा। यही हाल देवदासी प्रथा का भी है।इसकी जड़ें काफी गहरी हैं।

पंथ की पहली कड़ी में पारसी अंतिम संस्कार की कम सुनी कहानी थी, एक बार पढ़कर तो देखिए...

मौत के बाद अपनों को छूते तक नहीं:खुले में छोड़ देते हैं बिना कफन के शव; पारसी धर्म की अनोखी परंपरा

 - Dainik Bhaskar

मैं साउथ मुंबई के चर्चगेट स्टेशन पर हूं। यहां से बाहर निकलकर मरीन ड्राइव पहुंचती हूं। वहां से समंदर के पार कोने में एक घना जंगल दिखता है। कार से वहां पहुंचने में 20 मिनट लगे। मालाबार हिल्स पर 55 एकड़ में फैला ये जंगल सालों पुराना है। यहीं है डूंगरवाड़ी। यानी किसी पारसी की मौत के बाद का आखिरी दुनियावी मुकाम

किसी पारसी के अंतिम संस्कार से पहले यहां उसकी डेड बॉडी रखी जाती है। यहीं से संकरी राह से होते हुए तकरीबन 10 किलोमीटर चलने पर मिलता है- दखमा यानी टावर्स ऑफ साइलेंस। पारसी डेड बॉडी को जलाने, दफनाने या पानी में बहाने के बजाय टावर्स ऑफ साइलेंस में गिद्धों के खाने के लिए छोड़ देते हैं। आखिर वे ऐसा क्यों करते हैं... 

T20 World Cup India Vs Western Australia 2nd Warm-Up Match: दूसरे वॉर्म-अप मैच में भारत की करारी शिकस्त, हार्दिक पंड्या और ऋषभ पंत सब फेल

 

T20 World Cup India Vs Western Australia 2nd Warm-Up Match: दूसरे वॉर्म-अप मैच में भारत की करारी शिकस्त, हार्दिक पंड्या और ऋषभ पंत सब फेल

टी20 वर्ल्डकप से पहले आज भारतीय टीम ने अपना दूसरा अन-ऑफिशियल वॉर्म-अप मैच में खेला. वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पर्थ में खेले गए इस मैच में टीम इंडिया को 36 रनों से हार झेलनी पड़ी. इस मैच में केएल राहुल ने कप्तानी की थी. मुकाबले में ऋषभ पंत और हार्दिक पंड्या समेत कोई भी बल्लेबाज दमदार पारी नहीं खेल सका...

Rishabh Pant (Twitter)Rishabh Pant (Twitter)
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  • पर्थ,
  • 13 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 2:54 PM IST

T20 World Cup India Vs Western Australia 2nd Warm-Up Match: ऑस्ट्रेलिया में टीम इंडिया ने अपने मिशन टी20 वर्ल्डकप की शानदार शुरुआत की थी. उसने पहले अन-ऑफिशियल वॉर्म-अप मैच में वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया को 13 रनों से हराया था. मगर उसी टीम के खिलाफ आज खेले गए दूसरे अन-ऑफिशियल वॉर्म-अप मैच में टीम इंडिया को 36 रनों से हार झेलनी पड़ी है.

मैच में टीम इंडिया ने पहले गेंदबाजी की. लगातार इस दूसरे वॉर्म-अप मैच में विराट कोहली को जगह नहीं मिली है. जबकि पहले मैच से बाहर रहे केएल राहुल ने इस मुकाबले में कप्तानी की. हालांकि रोहित शर्मा बतौर प्लेयर ही खेले, मगर उनकी बैटिंग नहीं आई.

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